Thursday, 13 November 2014

श्री जीतन राम मांझी जी

आदरणीय श्री जीतन राम मांझी जी,
सप्रेम नमस्ते,
मैं आपका सबसे बड़ा प्रशंसक हूँ. मुझे पता है आपकी दो टूक बातों के, आपकी वाक्-पटुता और निर्भीक शैली के और भी कई प्रशंसक होंगे परन्तु मैं फिर से स्पष्ट करना चाहूँगा की उन सब प्रशंसकों में मैं नंबर वन हूँ. बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में इतने अल्पकाल में आपने इतनी प्रसिद्धि पाई है जितना कई राजनेता अपने सम्पूर्ण जीवनकाल में नहीं पा पाते. कुछ तो आपको दिग्विजय सिंह से भी बड़ा मानने लगे हैं, इसका मतलब ये हुआ की आपने संजय झा, मनीष तेवारी इत्यादि को परास्त कर दिया है. अगला पड़ाव राहुल गाँधी जी है और अगर सब कुछ ठीक रहा तो केजरीवाल वाले दिन भी निकट हैं.
सच कहूं तो जब नितीश जी ने मोदी की जीत से खिसियाकर आपको मुख्यमंत्री बनाया था तो मैं बड़ा निराश था. नितीश जी को मैं क़ाबिल आदमी समझता था, मैंने सोंचा ये जीतन क्या नितीश जी की जगह ले पायेगा पर देखिये आपने इस विदेशी ब्राह्मण की सोंच कैसे बदल दी. बाढ़ पीड़ितों को जब आपने मूषकाहार की शिक्षा दी तब आपने सीधा “मैन वर्सस वाइल्ड” वाले बियर ग्रिल्ल्स को चेतावनी दे दी. विपरीत परिस्थितियों में जीवन जीने की अनूठी शिक्षा थी वो. नितीश जी को लगा था की आप एक लक्ष्यविहीन पुरुष हैं परन्तु पुनः मुख्यमंत्री बनने की लालसा जताकर आपने सिद्ध कर दिया की वो बिहारी नेता ही क्या जो कुर्सी यूंहीं छोड़ दे.
फिर आपने दलितों को कहा की मित्रों आबादी बढाओ और इतना बढाओ की देश के भाग्यविधाता बन जाओ. मैंने आपको मन ही मन प्रणाम किया लेकिन मिडियावाले आपको बदनाम करने पर तुल गए. मैंने सोंचा आप कुछ नहीं बोलेंगे पर नहीं प्रभु आपने सारे मिडिया वालों को चोर-उचक्का कहा. मन से प्रणाम वाला सिस्टम छोड़ के मैंने आपको साष्टांग दंडवत किया. हुत्स्पा(chutzpa) के पर्सोनिफिकेशन हैं आप प्रभु. फिर आपने कई और शब्दवाण चलाये. डाक्टरों के हाथ तक कटवाने की बात कह दी. ठीक ही किया, वैसे भी कम डाक्टर बचे हैं बिहार में...जो बचे हैं वो हाथ रख कर क्या करेंगे. दामाद स्नेह में आप स्वयं कांग्रेस कुल-माता सोनिया देवी से भी ऊपर निकल गए, सुना है की बिहार की देख रेख आज कल दामाद जी ही कर रहे हैं. बिहार में दामादो की बड़ी इज्जत है, बड़े प्रेम से उन्हें “पहुना जी” बुलाया जाता है. अब क्या राज्य पहुना जी से बड़ा है, बताइए?
जीतन जी, आपने कल एक ही झटके में सारे अगड़ों को विदेशी बना दिया. मैं थोडा गुस्से में आया ज़रूर था परन्तु फिर लगा की आपके श्रीमुख से निकला है तो अवश्य सत्य ही होगा. मैंने अपना बुक शेल्फ देखा, सारे फिरंगी लेखक भरे थे, जूतें नाइकी के, चश्मा रे-बैन, जींस लेवाइस, घडी टॉमी...आपने क्या गलत बोला, सच में फिरंगी ही तो हैं हम. शायद सारे सवर्ण मेरे जैसे ही होंगे. नहीं भी होंगे तो रूल ऑफ़ मैजोरिटी के अनुसार लपेट लेंगे.
आज फिर आपने एक महत्त्वपूर्ण बात कही है, की बिहार से जो मर्द बाहर काम करने जाते हैं उनके पीछे उनकी औरतें क्या गुल खिलाती होंगी? बहुत सही कहा, महेश भट्ट भी तो “जिस्म की जरूरतों” पर सिनेमा बनाते रहते हैं. एक ही झटके में औरतों के कैरेक्टर को जो आपने धक्का मारा वो क़ाबिल-ऐ-तारीफ़ है. अभी फेमिनिस्ट आपको गालिया देंगी सर, कहेंगी “सेक्सिस्ट” है, “बीगोट” है...आप घबराइयेगा नहीं, डटे रहिएगा. अरे ऐसे बोलते रहिएगा तभी तो पब्लिक सुनेगी, और सुनेगी तो समझेगी, समझेगी तो पहचानेगी और अगली बार जनता दल यूनाइटेड को उसके सेक्युलर गोतियों के साथ बाहर का रास्ता दिखायेगी.
बोलते रहिये, हम सुन रहे हैं, सतर्क हो रहे हैं और तैयार हो रहे हैं अगले चुनाव के लिए...क्यूंकि भाजपा आ रही है, सुन रहे हैं ना?
आशा है इस पत्र के लिए आप मेरे हाथ नहीं कटवाएँगे!
आपका “विदेशी” पंडित अनुयायी,

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